02-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सर्वोत्तम स्नेह, सम्बन्ध और सेवा

सर्व स्नेही, सर्वशक्तिवान शिवबाबा बोले

‘‘आज बापदादा सभी बच्चों की स्नेह भरी सौगातें देख रहे थे। हर एक बच्चे की स्नेह सम्पन्न याद सौगात भिन्न-भिन्न प्रकार की थी। एक बापदादा को, अनेक बच्चों की सौगातें अनेक संख्या में मिलीं। ऐसी सौगातें और इतनी सौगातें विश्व में किसी को भी मिल नहीं सकती। यह थी दिल की सौगातें दिलाराम को! और सभी मनुष्य आत्मायें स्थूल सौगात देते हैं। लेकिन संगमयुग में यह विचित्र बाप और विचित्र सौगातें हैं। तो बापदादा सभी के स्नेह की सौगात देख हर्षित हो रहे थे। ऐसा कोई भी बच्चा नहीं था - जिसकी सौगात नहीं पहुँची हो। भिन्न-भिन्न मूल्य की जरूर थीं। किसकी ज्यादा मूल्य की थी। किसी की कम। जितना अटूट और सर्व सम्बन्ध का स्नेह था उतने वैल्यु की सौगात थी। नम्बरवार स्नेह और सम्बन्ध के आधार से दिल की सौगात थी। दोनों ही बाप सौगातों में से नम्बरवार मूल्यवान की माला बना रहे थे, और माला को देख चेक कर रहे थे कि मूल्य का अन्तर विशेष किस बात से है। तो क्या देखा? स्नेह सभी का है, सम्बन्ध भी सभी का है, सेवा भी सभी की है लेकिन स्नेह में आदि से अब तक संकल्प द्वारा वा स्वप्न में भी और कोई व्यक्ति या वैभव की तरफ बुद्धि आकर्षित नहीं हुई हो। एक बाप के एक रस अटूट स्नेह में सदा समाये हुए हों। सदा स्नेह के अनुभवों के सागर में ऐसा समाया हुआ हो जो सिवाए उस संसार के और कोई व्यक्ति वा वस्तु दिखाई न दे। बेहद के स्नेह का आकाश और बेहद के अनुभवों का सागर। इस आकाश और सागर के सिवाए और कोई आकर्षण न हो। ऐसे अटूट स्नेह की सौगात नम्बरवार वैल्युएबल थी। जितने वर्ष बीते हैं उतने वर्षों के स्नेह की वैल्यु आटोमेटिक जमा होती रहती है और उतनी वैल्यु की सौगात बापदादा के सामने प्रत्यक्ष हुई। तीनों बातों की विशेषता सभी की देखी-

1. स्नेह अटूट है - दिल का स्नेह है वा समय प्रमाण आवश्यकता के कारण, अपने मतलब को सिद्ध करने के कारण है - ऐसा स्नेह तो नहीं है? 2. सदा स्नेह स्वरूप इमर्ज रूप में है वा समय पर इमर्ज होता, बाकी समय मर्ज रहता है? 3. दिल खुश करने का स्नेह है वा जिगरी दिल का स्नेह है? तो स्नेह में यह सब बातें चेक की।

2. सम्बन्ध में - पहली बात सर्व सम्बन्ध है वा कोई-कोई विशेष सम्बन्ध है? एक भी सम्बन्ध की अनुभूति अगर कम है तो सम्पन्नता में कमी है और समय प्रति समय वह रहा हुआ एक सम्बन्ध भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। जैसे बाप शिक्षक सतगुरू यह विशेष सम्बन्ध तो जोड़ लिया लेकिन छोटा सा सम्बन्ध पोत्रा धोत्रा भी नहीं बनाया तो वह भी सम्बन्ध अपने तरफ खींच लेगा। तो सम्बन्ध में सर्व सम्बन्ध है?

दूसरी बात - बाप से हर सम्बन्ध 100 प्रतिशत है वा कोई सम्बन्ध 100 प्रतिशत है, कोई 50 प्रतिशत है वा नम्बरवार हैं? परसेन्टेज में भी फुल है वा थोड़ा अलौकिक थोड़ा लौकिक, दोनों में परसेन्टेज में बांटा हुआ है?

तीसरा - सर्व सम्बन्ध की अनुभूति का रूहानी रस सदा अनुभव करते वा जब आवश्यकता होती है तब अनुभव करते? सदा सर्व सम्बन्धों का रस लेने वाले हैं वा कभी-कभी?

3. सेवा में - सेवा में विशेष क्या चेक किया होगा? पहली बात - जो मोटे रूप में चेकिंग है - मन वाणी कर्म वा तन-मन-धन सब प्रकार की सेवा का खाता जमा है? दूसरी बात - तन-मन-धन, मन-वाणी-कर्म इन 6 बातों में जितना कर सकते हैं उतना किया है वा जितना कर सकते हैं, उतना न कर यथा शक्ति स्थिति के प्रमाण किया है? आज स्थिति बहुत अच्छी है तो सेवा की परसेन्टेज भी अच्छी, कल कारण अकारण स्थिति कमज़ोर है तो सेवा की परसेन्टेज भी कमज़ोर रही है। जितना और उतना नहीं हुआ। इस कारण यथा शक्ति नम्बरवार बन जाते हैं।

तीसरी बात - जो बापदादा द्वारा ज्ञान का खजाना, शक्तियों का खजाना, गुणों का खजाना, खुशियों का खजाना, श्रेष्ठ समय का खजाना, शुद्ध संकल्पों का खजाना मिला है, उन सब खजानों द्वारा सेवा की है वा कोई-कोई खजाने द्वारा सेवा की है? अगर एक खजाने में भी सेवा करने में कमी की है वा फराखदिल हो खजानों को कार्य में नहीं लगाया है, थोड़ा बहुत कर लिया अर्थात् कन्जूसी की तो इसका भी रिजल्ट में अन्तर पड़ जाता है!

चौथी बात - दिल से की है वा ड्युटी प्रमाण की है! सेवा की सदा बहती गंगा है वा सेवा में कभी बहना कभी रूकना। मूड है तो सेवा की, मूड नहीं तो नहीं की। ऐसे रूकने वाले तालाब तो नहीं है।

ऐसे तीनों बातों की चेकिंग प्रमाण हरेक की वैल्यु चेक की। तो ऐसे-ऐसे विधिपूर्वक हर एक अपने आपको चेक करो। और इस नये वर्ष में यही दृढ़ संकल्प करो कि कमी को सदा के लिए समाप्त कर सम्पन्न बन, नम्बरवार मूल्यवान सौगात बाप के आगे रखेंगे। चेक करना और फिर चेन्ज करना आवेगा ना। रिजल्ट प्रमाण अभी किसी न किसी बात में मैजारिटी यथाशक्ति है। सम्पन्न शक्ति स्वरूप नहीं है। इसलिए अब बीती को बीती कर वर्तमान और भविष्य में सम्पन्न, शक्तिशाली बनो।

आप लोगों के पास भी सौगातें इकट्ठी होती हैं तो चेक करते हो ना - कौनसी कौन-सी वैल्युएबल है। बापदादा भी बच्चों का यही खेल कर रहे थे। सौगातें तो अथाह थीं। हर एक अपने अनुसार अच्छे ते अच्छा उमंग उत्साह भरा संकल्प, शक्तिशाली संकल्प बाप के आगे किया है। अब सिर्फ यथाशक्ति के बजाए सदा शक्तिशाली - यह परिवर्तन करना। समझा। अच्छा –

सभी सदा के स्नेही, दिल के स्नेही, सर्व सम्बन्धों के स्नेही, रूहानी रस के अनुभवी आत्मायें, सर्व खजानों द्वारा शक्तिशाली, सदा सेवाधारी, सर्व बातों में यथाशक्ति को सदा शक्तिशाली में परिवर्तन करने वाले, विशेष स्नेही और समीप सम्बन्धी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

दादी जानकी जी से - मधुबन का शृंगार मधुबन में पहुंच गया। भले पधारे। बापदादा और मधुबन का विशेष शृंगार हो, विशेष शृंगार से क्या होता है? चमक हो जाती है ना। तो बापदादा और मधुबन विशेष शृंगार को देख हर्षित हो रहे हैं। विशेष सेवा में बाप के स्नेह और सम्बन्ध को प्रत्यक्ष किया यह विशेष सेवा सबके दिलों को समीप लाने वाली है। रिजल्ट तो सदा अच्छी है। फिर भी समय-समय की अपनी विशेषता की रिजल्ट होती है तो बाप के स्नेह को अपनी स्नेही सूरत से, नयनों से प्रत्यक्ष किया यह विशेष सेवा की। सुनने वाला बनाना यह कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन स्नेही बनाना यह है विशेष सेवा। जो सदा होती रहेगी। कितने पतंगे देखे, शमा पर फिदा होने की इच्छा वाले कितने परवाने देखे? अभी नयनों की नजर से परवानों को शमा की ओर इशारा करने का ही विशेष समय है। इशारा मिला और चलते रहेंगे। उड़ते-उड़ते पहुँच जायेंगे। तो यह विशेष सेवा आवश्यक भी है और की भी है। ऐसी रिजल्ट है ना! अच्छा है हर कदम में अनेक आत्माओं की सेवा समाई हुई है, कितने कदम उठाये? तो जितने कदम उतने ही आत्माओं की सेवा। अच्छा चक्र रहा। उन्हों के भी उमंग उत्साह की अभी सीजन है। जो होता है वह अच्छे से अच्छा होता होता है। बापदादा के मुरबी बच्चों के हर कर्म की रेखा से अनेकों के कर्मों की रेखा बदलती है। तो हर कर्म की रेखा से अनेकों की तकदीर की लकीर खींची। चलना अर्थात् तकदीर खींचना। तो जहाँ-जहाँ जाते हैं अपने कर्मों की कलम से अनेकों की तकदीर का कलम है। कलम से लकीर खिचेंगी ना। अनेक आत्माओं के तकदीर की लकीरें खींचते जाते। तो कदम अर्थात् कर्म ही मुरबी बच्चों के तकदीर की लकीर खींचने की सेवा के निमित्त बनीं। तो अभी बाकी लास्ट आवाज़ है - ‘‘यही हैं, यही हैं’’ जिसको ढूँढते हैं वे यही हैं। अभी सोचते हैं - यह हैं वा वह हैं। लेकिन सिर्फ एक ही आवाज़ निकले - यही है। अभी वह समय समीप आ रहा है। तकदीर की लकीर लम्बी होते-होते यह भी बुद्धि का जो थोड़ा सा ताला रहा हुआ है वह खुल जायेगा। चाबी तो लगाई है, खुला भी है लेकिन अभी थोड़ा सा अटका हुआ है, वह भी दिन आ जायेगा। अच्छा – ओम शान्ति।

सदा स्नेह के अनुभवों के सागर में ऐसा समाया हुआ हो जो सिवाए उस संसार के और कोई व्यक्ति वा वस्तु दिखाई न दे। बेहद के स्नेह का आकाश और बेहद के अनुभवों का सागर। इस आकाश और सागर के सिवाए और कोई आकर्षण न हो।